Hindi Short Story Unchai By M.Mubin

कहानी उंचाई लेखक एम मुबीन

कॉल बेल बजी.
दरवाजा खोलने पर सामने कुछ ऐसी शक्लें दिखाई जो देखने से ही नागवार सी लगी. "क्या बात है?" मैंने ाज्यफहामया नज़रों से उनकी ओर देखा.
"भाव का सप्ताह दो?"
"भाव का सप्ताह...... मैं समझा नहीं." मेरी कुछ समझ में नहीं आया.
"नया नया यहाँ रहने के लिए आया है ना इसलिए इधर के तरीके पता नहीं हैं. एक दो महीने में सब मालूम हो जाएगा. चुपचाप दो सौ रुपये दे दो." एक ने कहा.
"दो सौ रुपये...! मगर किस बात के दो सौ रुपये?" मैंने पूछा.
"हे अकबर! इधर आ और जो तेरा नया पड़ोसी आया है ना उसे बता कि हम किस बात के सौ रुपये मांग रहे हैं. तो उसे बता दे. अगर तुझ से हमारी बात समझ में नहीं आई तो हम अपनी भाषा में अपने ढंग से उसे समझाएँ कि हम किस लिए दो सौ रुपये मांग रहे हैं. "एक ने अकबर भाई को आवाज़ दी.
"अरे नहीं दामो भाई मैं उन्हें समझा दूँगा. आपको उसे समझाने की जरूरत नहीं पड़ेगी." कहते हुए अकबर भाई आगे आए और मुझसे बोले.
"सलीम साहब उन्हें दो सौ रुपये दे दीजिए."
"परंतु दो सौ रुपये किस बात के?"
"वह आपको बाद में समझा दूंगा पहले उन्हें दो सौ रुपये दे दीजिए." अकबर भाई ने आग्रह किया तो मैं सोच में डूब गया. जो लोग दो सौ रुपये मांग रहे थे. सूरत और रूप से ऐसे थे कि अगर इन की मांग पूरी नहीं की गई तो वह मुझसे उलझ सकते थे. उलझने की स्थिति में मुझे ही गज़नद पहुंच सकती थी. परंतु दो सौ रुपये मुफ्त में उन्हें देना मेरे गले से नीचे नहीं उतर रहा था.
कुछ सोच कर मैंने उन्हें दो सौ रुपये दे दिए. जाते समय वह अकबर भाई से कह गए. "अकबर! हम किस लिए पैसा मांगते हैं उसे अच्छी तरह समझा देना. अगली बार उसने कोई हुज्जत नहीं करना चाहिए. अगर अगली बार सप्ताह के लिए हमसे उलझा तो हम उसका हुलिया बिगाड़ देंगे.
"नहीं नहीं दामो भाई! अगली बार ऐसा कुछ नहीं होगा. उन्हें सब समझा दूँगा." अकबर भाई ने कहा और उनके जाने के बाद घर में आ गए.
"सलीम भाई! आप यहां नए नए रहने के लिए आए हैं इसलिए यहां के लिए तरीके नहीं जानते. यहां का दादा है जो यहां की शाखा का प्रमुख है. वसंत , हर महीने उसे सप्ताह देना पड़ता है. उसे सप्ताह देने से एक फायदा यह होता है कि इस कॉलोनी में कभी कुछ नहीं होता. कोई गुंडा आँख उठाकर भी कॉलोनी की ओर नहीं देखता है न इस कॉलोनी की किसी लड़की को छेड़ने की हिम्मत करता है. और तो और अगर किसी दूसरी कॉलोनी काकोई आदमी भी इस कॉलोनी के किसी व्यक्ति से उलझने है तो वसंत के आदमी उसे ऐसा सबक सिखाया है कि वो इस कॉलोनी के पास से गुजरने से भी भय खाता है और फिर हम तो मुसलमान हैं. पता नहीं कब कहीं छोटी सी चिंगारी भड़क उठे और चिंगारी शोला बनकर हमारी छोटी सी दुनिया हमारी सारी जीवन की खून पसीने की कमाई जलाकर खाक कर दें. अगर ऐसा कोई घटना भी हुआ तो हम पर कोई आंच नहीं आती है. वसंत के आदमी हमारी रक्षा करते हैं समझ लीजिए कि एक तरह से हम अपनी सुरक्षा की कीमत अदा कर रहे हैं. "अकबर भाई ने विस्तार से बताया.
"क्या कॉलोनी के दूसरे लोग भी सप्ताह देते हैं."
"हां सभी देते हैं. हम अपनी अपने घरों की रक्षा के लिए सप्ताह देते हैं. तो वह भी अपनी रक्षा के लिए सप्ताह देते हैं. जो सप्ताह नहीं देता उसका कॉलोनी में रहना कठिन हो जाता है. वसंत के आदमी उसे इतना तंग करते हैं कि उसका यहाँ रहना दोभर हो जाता है. कोई भी उसे उनसे नहीं बचा सकता. यहां तक कि पुलिस भी वसंत के आदमियों के विरूध कोई कार्रवाई नहीं करती. बरसने या तो उसे वसंत को सप्ताह देना पड़ता है या फिर यह कॉलोनी छोड़ देना प्रती है. "
"अच्छा यह वसंत पवार है ना? जो इस बार इस क्षेत्र से नगर चुनाव में खड़ा होने वाला है." मुझे कुछ याद आया.
"हां वही. खड़ा किया होगा तो कहता हूँ वह इस क्षेत्र से चुने भी हो जाएगा. क्योंकि पूरे क्षेत्र में उसका रोब और दबदबा है इस क्षेत्र का शाखा प्रमुख है. इसलिए उसकी जीत सुनिश्चित है." अकबर भाई बोले.
"वसंत पवार......!" मैंने फिर. "नाम कुछ ननवा सा लग रहा है या मैं समझता हूँ कि इस आदमी को बहुत समीप से जानता हूँ. इसके बारे में कुछ और विस्तार से बताइए."
"मैं भी नया नया इस क्षेत्र में आया हूँ." अकबर भाई बोले. "इसलिए भी वसंत के बारे में अधिक विवरण नहीं बतासकता. सुना है वह इस क्षेत्र का नेता है, बिल्डर है, दादा है, शाखा प्रमुख है और सब कुछ है. "
"यह वसंत के आदमी थे. वसंत ऐसा भी करता है या यह सब कर सकता है मुझे यकीन नहीं आ रहा था परंतु विश्वास न करने का कोई कारण भी नहीं थी. जो कुछ मैंने वसंत के बारे में सुन रखा था, जो कुछइसके बारे में अखबारों में पढ़ा था उसके बाद वह यह कर सकता है पर विश्वास नहीं करने का काई औचित्य भी नहीं था.
दरअसल पांच साल पहले तक वसंत मेरा हम कटोरा और हम नवालह था. उसके जीवन के हर पहलू हर दुख सुख को मैं जानता था दरअसल उसे इस शहर में लाने वाला भी मैं ही था. परंतु पिछले पांच सालों में एक बार भी उसका सामना नहीं हो सका. केवल इसके बारे में, मैं सुनता रहा कि वह आजकल कहाँ है और क्या कर रहा है या फिर उसके बारे में अखबारों में पढ़ता रहा. या किसी राजनीतिक सभा में मंच पर उसे देख लेता. परंतु उस समय वह मंच पर होता और तमाशाईवं में.
सात साल पहले में वसंत को अपने साथ अपने पुश्तैनी गांव से शहर में लाया था. वसंत बहुत पुरानी जान पहचान थी. गाँव में छोटे मोटे कामकाज करके वह अपना और अपने परिवार का पेट भरता था. साल दो साल में जब कभी में गांव जाता वसंत से मुलाकात होती तो इधर उधर की बातें करने के बाद वह मुझसे एक ही प्रस्ताव करता था. "सलीम भाई! गांव में छोटे काम करके बड़ी मुश्किल से अपना और अपने परिवार का पेट पालतू हूँ. बचत के नाम पर एक पैसा भी पास नहीं है जो आड़े वक्त में काम आए. आप तो शहर में बहुत बड़ी कंपनी में काम करते हैं. आपकी फैक्ट्री में काम करने के लिए मजदूरों की जरूरत तो पड़ती ही होगी. मुझे भी फैक्ट्री में काम दिला दीजिए.
उसे फैक्ट्री में लेबर का काम दिलाना मेरे लिए कोई मुश्किल काम नहीं था. परंतु मैं इस बात से डरता था कि वह गांव का भूला भाले आदमी शहर की समस्याओं और मसाइब का सामना नहीं कर सकेगा. इसलिए उसे समझाता था कि गांव में उसे जो आधी रोटी मिल रही है. वही ठीक है. परंतु बहुत जोर देने पर एक दिन उसे अपने साथ शहर ले आया. इस समय में शहर की एक चाल में रहता था. दो दिनों तक वह मेरे घर में ही रहा. हम जो खाते हमारे साथ खाता और दरवाजे के पास बिस्तर लगाकर ठिठुरते कर पड़ा रहता.
दो दिनों के बाद उसे अपनी फैक्ट्री के मैनेजर के पास ले गया और उसका परिचय कराते हुए कहा. "प्रबंधक साहब मेरे गांव का आदमी है बहुत मेहनती और ईमानदार है उसे कोई काम दे दीजिए."
प्रबंधक ने मेरे कहने पर उसे तुरंत काम पर लगा दिया. उस दिन वह मेरे साथ ही काम पर जाने लगा. हम दोनों साथ घर से ऑफिस जाने के लिए निकलते. वह नीचे फैक्टरी में जाकर मशीनों पर काम करता और उच्च कार्यालय में पत्र में सर खपाता.
एक महीने तक वह मेरे घर में रहा. वह सवेरे पांच बजे ही उठ जाता था. नहा धक्र मंदिर जाता और आते समय घर का जरूरी सामान ले आता. फिर हम साथ नाश्ता करते और साथ में टफन लेकर ऑफिस जाते. वापसी में हमारे रास्ते अलग अलग होते थे. वसंत के लिए शहर नया था इसलिए वह घूमने फिरने के लिए निकल जाता था. आठ बजे वह घर वापस आता. हम साथ रात का खाना खाते इसके बाद वह मुहल्ले की एक भजन कीरतन मंडली में भजन गाने चला जाता था. रात बारह बजे के समीप वह वहां से आता था. सप्ताह में दो तीन ापवास (रोज़े) ज़रूर करता था. वे सात विभिन्न देवताओं को मानता था. यह दिन उसने तय कर रखा था कि उस दिन किस देवता के मंदिर जाया जाए.
जब पहली वेतन उसके हाथ में आई तो इन पैसों को देख कर उसकी आंखों में आंसू आ गए. "सलीम भाई मैं ने जीवन में स्‍वंय के इतने पैसे नहीं देखे." उसने खाने के पैसे देने चाहे परंतु मैंने मना कर दिया.
इसके बाद अपने घर वालों को शहर लाने की इसमें बोल समाई परंतु शहर में रहने के लिए कोई ठिकाना कर लेना इतना आसान नहीं था. वह दो तीन महीनों तक इस ठिकाने के लिए दर दर भटक रहा.
एक दिन आया तो बहुत खुश था. "एक जगह किसी की ज़मीन पर अवैध झोपड़ी बन रहे हैं मैंने भी एक झोपड़ी बना लिया है. अब मैं वहीं रहूंगा. कल ही जाकर अपने परिवार को लेकर आता हूँ." अन्य दिन जाकर वह अपने बीवी बच्चों को ले आया और झोपड़ी में रहने लगा. फैक्ट्री में मेहनत और लगन से काम करता था. हर कोई उसकी प्रशंसा करता था. इसके बाद वह कुछ बदमाश किस्म के लोगों के हत्थे चढ़ गया.
फैक्टरी में उन लोगों की एक संघ थी. वे काम आदि तो नहीं करते थे अपनी संघ और संघ के नेताओं और संघ की मदद करने वाली राजनीतिक दल और उसके आक़ा नाम लेकर ड्राते धमकाने थे. उनके साथ रहने से वसंत भी उनके जैसा हो गया. काम में दिल नहीं लगता. बात बात पर वह आफेसरों और मालिकों से उलझने और हड़ताल करने की धमकी देता और काम बंद करा देता था. उसकी हरकतों से प्रबंधक और मालिक विनंती आ गए थे. प्रबंधक के कहने पर एक दो बार मैंने भी उसे समझाया था कि उसकी हरकतों के कारण उसे काम से निकाला जा सकता है. परंतु उसने साफ उत्‍तर दे दिया था.
"वे मुझे काम से नहीं निकाल सकते. संघ हमारे साथ है हम फैक्टरी को जलाकर राख कर देंगे. यदि मालिकों ने हमारे विरूध कोई कदम उठाया."
आखिर वही हुआ जिसका डर था. वसंत को काम से निकाल दिया गया. वसंत ने संघ की मदद से हड़ताल की फैक्ट्री में तोड़फोड़ मचाई. बरसने मालिकों वह फैक्ट्री बंद कर दी. तब तक मेरा तबादला दूसरे ऑफिस में हो चुका था. इसके बाद वसंत की मुझसे मुलाकात नहीं हो सकी. इसके बारे में केवल समाचार मिलती रहें. इसके बाद सुना कि वह शहर की एक सड़क के नुक्कड पर ोड़ा पाउ की गाड़ी लगाता है. इसमें अच्छी खासी आमदनीहो जाती है. और उसके परिवार का पेट पल जाता है.
फिर सुना कि वह गाड़ी किसी को किराए पर दे दी क्योंकि उसे उस गाड़ी का अच्छा खासह किराया मिल रहा था. जब इतना अधिक किराया मिल रहा हो तो फिर मेहनत करने की क्या जरूरत. वह किराए में अपना गुजर बसर करने लगा.
एक दिन ख़बर मिली जिस जगह पर वसंत झोपड़ी बनाकर रहता है इस जगह का मालिक इस स्थान पर निर्माण अवैध झोपड़ी खाली करा रहा है. इस कोशिश में उनकी झोपड़ी वालों और मालिक का टकराव हो गया है. इस टकराव में झोपड़ी वालों की ओर से वसंत आगे है.
एक दिन सुना कि इस धरती पर निर्माण सभी झोपड़ी तड़ोाने में ज़मीन का मालिक सफल हो गया है. उसकी इस सफलता में वसंत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
मालिक ने वसंत को अपनी तरफ से मिला लिया और उसे अच्छी खासी रकम इस बात के लिए दी कि वह उन लोगों को किसी तरह जगह खाली करने के लिए राजी कर ले. वसंत ने यह काम किया.
उसने एक विशिष्ट राशि हर झोपड़ी को दी और उसे झोपड़ी खाली करने के लिए राजी किया और बदले में एक दूसरी जगह बताई जहां वह झोपड़ी बनाकर रह सकते हैं. उन लोगों को और क्या चाहिए था. वहां से हटने के लिए अच्छी खासी राशि मिल रही थी और रहने के लिए दूसरी जगह मिल रही थी.
वसंत ने दूसरी जमीन पर कब्जा कर उन लोगों को अवैध झोपड़ी बनाने में मदद की. और एक नया झोपड़ी बस्ती निर्माण हो गई. इस बस्ती का मालिक वसंत था. सभी झोपड़ी वालों से किराया वसूल करता था और वह खुशी खुशी उसे किराया देते थे क्योंकि अब वही उनका अंगरक्षक था. इस बीच वह एक राजनीतिक पार्टी का सदस्य बन गया था. इसके बाद वह राजनीतिक पार्टी की गतिविधियों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने लगा था जिसकी वजह से इस राजनीतिक दल में स्थान बन गया था और राजनीतिक दल के पीछे शरण मिल जाने के बाद उसकी शक्ति भी बढ़ गई थी उसे राजनीतिक दल की एक शाखा प्रमुख भी बना दिया. वह राजनीतिक दल के कार्यक्रमों, धार्मिक जलोसों और शासक के जश्न जन्म जलोसों बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेता था. इस दौरान शहर में दो समुदाय शिक्षा दंगों हुए. इन दंगों में भी वसंत ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया.
उसने इस घटना में सैकड़ों घर जलाए. लाखों रुपए का कीमती सामान लौटा कई लोगों को घायल किया और जान से मारा. दंगों के बाद बेशुमार शिकायतों पर पुलिस ने उसे दंगा करने के आरोप में गिरफ्तार भी किया परंतु दबाव से दो तीन दिनों में छोड़ दिया.
उसके पास बेशुमार दौलत जमा हो गई थी. राजनीति के साथ साथ समाज सेवा के नाम पर भी पैसा जमा करता था. इसके बाद उसने अपना व्यवसाय शुरू कर दिया. वह बिल्डर बन गया. वह शहर की खाली जमीनों पर अवैधकब्जा कर उन जमीनों के मालिकों से ऊन पोनिय कीमत पर वह ज़मीन हासिल कर लेता और उन पर इमारतें बनाकर ऊंची कीमतों में बेच के लाखों रुपये कमाता.
जिस पार्टी से संबंध था की राज्य में सरकार स्थापित हो जाने के बाद वसंत का पहुंच बढ़ता ही गया. इसके लिए कोई भी काम ना मुमकिन नहीं रहा. वह वैध ना वैध तरीकों से जमीनें मिल के कानूनी, गैर कानूनी तरीके पर इमारतें बनाकर बेचता और पैसा कमाता. इस पूरे क्षेत्र में उसका दबदबा सा छाया हुआ था. छोटे बड़े हर प्रकार के झगड़े निपटा के लिए लोग उसके पास जाते थे और वह अपना उचित अधिकार मेहनत लेकर उन सभी विवादों को हल कर देता था.
वह अगर गलत भी करता था तो उसे टोकन किसी हिम्मत ही नहीं होती थी. वह कई हत्या के मामलों में लिप्त था परंतु पुलिस इस पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं करती थी न कोई उसके विरूध भाषा खोलता था.
इस छोटी सी चाल के छोटे से कमरे रहते रहते मैं तंग आ गया था. इतने दिनों में मैंने इतने पैसे जमा कर लिए थे कि मैं किसी अच्छी जगह अच्छा सा फ्लैट ले सकूँ. अगर पैसे कम भी पड़ी तो सरकारी, गैर सरकारी ऋण प्रशासक का सहारा था. इस बीच एक एस्टेट एजेंट ने इस कॉलोनी में बिकने वाले एक फ्लैट के बारे में मुझे बताया. पहली नजर में मुझे फ्लैट और कॉलोनी पसंद आ गई. फ्लैट खरीद लिया गया और हम वहाँ रहने के लिए आ गए. वहां आने के बाद पता चला कि यह वसंत क्षेत्र है और वहां रहने के लिए भी वसंत को सप्ताह देना पड़ता है. इन बातों के बाद वसंत से मिलने की इच्छा मन में जागी. परंतु पता नहीं था कि वसंत से मिलना इतना आसान नहीं है. वसंत जिन लोगों से मिलना ज़रूरी समझता है. उन्हीं से मिलता है जो उसे कोई लाभ हो.
वसंत से मिलना तो बहुत जरूरी था. परंतु उससे मिलने का कोई रास्ता नहीं था. आखिर उससे मिलने का मैंने रास्ता सोच लिया. अगली बार दामो जब वसंत का सप्ताह मांगने आया, तो मैंने सप्ताह देने से इन्‍कार कर दिया और कहा कि में वसंत से मिलना चाहता हूँ.
"हे काहे को अपनी मौत को दावत दे रहा है. भाव सुनेगा कि तेरे को इसलिए उसके पास लाया कि तू ने शनिवार देने से इन्‍कार किया है तो कुछ सुनने से पहले तुझ पर चाकू के दो चार वार मारकर तुझे अधमरा कर देगा. "
"कुछ भी हो मैं वसंत से मिलना चाहता हूँ." जब मैंने आग्रह किया तो वह मुझे वसंत के किले में ले गए. वह किला वसंत का कार्यालय था जहां बैठकर वह हर किसी का न्याय करता था. आलीशान ड्राइंग रूम में सारीदुनिया के लक्जरी लाखों करोड़ों रुपए की चीजें सजी थीं. वसंत का धन और उसकी ऊंचाई देख कर मैं दनग रह गया. मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरे साथ इस शहर में आने वाला वसंत इतनी जल्दी इस ऊंचाई पर पहुंच जाएगा और उसे नीचे से ताकि उसके सामने बौना बन जाऊँगा.
"भाव...! यह व्यक्ति नया नया कॉलोनी में रहने आया है और सप्ताह देने से इन्‍कार कर रहा है. और आपसे मिलना चाहता है."
"कौन है वह हरामज़ादा जो मुझे शनिवार देने से इन्‍कार कर रहा है." दामो की बात सुनते ही वसंत गुस्से में भरा मड़ा. मुझ पर नज़र पड़ते ही वह ठिठककर रह गया और कुछ सोचने लगा.
"सलीम भाई आप!" वह मुझे आश्चर्य से देखता हुआ बोला.
"हां वसंत ... मैं." मैंने उत्‍तर दिया.
"अरे आइए सलीम भाई मैंने तो सपने में भी नहीं सोचा था कभी आपसे इस तरह मुलाकात होगी. सलीम भाई! इतने दिनों बाद आपको देख कर मैं कह नहीं सकता मुझे कितनी खुशी हो रही है." हम दोनों पास बैठ गए और बातों का सिलसिला चल निकला. वह मुझे बताने लगा कि कैसे इस स्थान पर पहुंचा है. और मैं चुपचाप देखता रहा.
"सलीम भाई! आप मुझे इस तरह क्यों देख रहे हैं?" वह अंत पूछ बैठा.
"देख रहा हूँ. मेरे साथ आया हुआ गांव का भूला भाले वसंत पवार कितनी जल्दी ऊंचाई पर पहुंच गया है."
"सलीम भाई! वसंत पवार बहुत जल्दी बहुत ऊंचाई पर पहुंचा जरूर है." वसंत दर्द भरे स्वर में बोला. "परंतु ऊंचाई तक पहुंचने के लिए उसने अपने अंदर की सभी अच्छाइयों, नैतिकता, गुणों को हत्या कर उनकी लाशेंसीढ़ी बनाकर इस ऊंचाई को हासिल किया है. "
अप्रकाशित मौलिक
------------------------समाप्‍त--------------------------------पता
एम मुबीन 303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा मोबाईल 09322338918 Email:- mmubin123@gmail.com

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