Hindi Short Story Desh NikalaBy M.Mubin


कहानी  देश निकाला   लेखक  एम मुबीन   

ट्रेन के  विशेष डिब्बे में सौ के समीप  लोग थे. उनमें महिलाएं भी थीं और बच्चे भी, युवा भी और बूढ़े भी. कुछ लोगों का सारा परिवार उस डिब्बा था. कुछ लोगों का परिवार विभाजन हो गया था.
परिवार के कुछ लोग इस डिब्बे में कैद  यात्रा कर रहे थे. एक अंजान मंजिल की ओर. कुछ लोग बम्बई में ही रह गए थे.
वह अकेला उस डिब्बे में था.
उसकी सकीना और बबलो बम्बई में ही रह गए थे. पता नहीं उस समय वह क्या कर रहे होंगे?
जब पुलिस उसे ले जा रही थी तब सकीना कितनी रो रही थी गुड़ गड़ा रही थी. एक साल का बबलो सकीना को रोता देखकर बेतहाशा रोने लगा था. सकीना पुलिस वालों के हाथ पैर पड़ रही थी रो रही थी, दया की भीख मांगरही थी और कह रही थी.
"मेरे आदमी को छोड़ दो, मेरे आदमी को मुझ से जुदा मत करो. मैं उसके बिना नहीं रह सकती." परंतु पुलिस ने उसकी एक न सुनी. अंत में वह इस समय उससे मिलने रेलवे स्टेशन पर आई थी जब उसे पता हुआ था कि उसे बांग्लादेश ले जाया जा रहा है. इस समय उसे डिब्बे में बंद कर दिया गया था.
डिब्बे के दरवाजों पर पांच सशस्त्र पुलिस पहरा दे रहे थे. डिब्बे में सात आठ सशस्त्र पुलिस थी. वह खिड़की के पास बैठा था. और सकीना खिड़की की सलाख पकड़कर दहाडे मार मार कर रो रही थी.
"रहमान! तुम कहाँ जा रहे हो. मुझे छोड़कर कहाँ जा रहे हो, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती मुझे छोड़कर मत जाओ, बबलो तुम्हारे बिना कैसे रहेगा. छोड़ दो ज़ालिमों मेरे पति को छोड़ दो..... .! यह बांग्लादेशी नहीं है. यह भारतीय है उसने हिंदुस्तान में जन्म लिया है. "
इस डिब्बे के पास पहरा देते एक सिपाही ने उसे एक जोरदार धक्का दिया था और सकीना मंच पर जा गिरी थी.
उसका खून खोल उठा था.
"तेरी तो......!" उसकी आवाज़ उसके गले में ही घुट कर रह गई थी. क्योंकि डिब्बे में पहरा देने वाले एक सिपाही की बंदूक की नाल उसकी कनपटी से लगी हुई थी. "चुपचाप बैठ जा . अधिक हशियारी नहीं करने का, साला अधिक हशियारी तो उड़ा देगा क्या? चयाला! सोता ला दादा समझतोए. "(स्‍वंय  को दादा समझता है) और वह चुपचाप अपनी सीट पर बैठकर हसरत से सकीना को देखने लगा. सकीना प्लेट फार्म पर बैठी दहाडे मार मार कर रो रही थी.
फिर गाड़ी ने सीटी दी और मंच पर दौड़ने लगी.
सकीना चौंकी और फिर उठकर गाड़ी के पीछे दौड़ी.
"बबलो अब्बा मुझे छोड़कर मत जाओ. बबलो अब्बा मुझे छोड़ कर मत जा बचाव."
क्षण बह क्षण वह उससे दूर बहुत दूर होती जा रही थी. गाड़ी गति पकड़ रही थी और फिर वह उसकी नज़रों से ओझल हो गई. उसका एक अनजान मंजिल की ओर यात्रा हो गया. वह कहां जा रहे हैं उन्हें इस बात का भी पता नहीं था. उन्हें सिर्फ इतना पता चला कि उन्हें इस ट्रेन द्वारा कलकत्ता ले जाया जा रहा है. कलकत्ता ले जाकर उन्हें कलकत्ता पुलिस के हवाले कर दिया जाएगा और पुलिस उन्हें बांग्लादेश की सीमा में डखकील देगी.
या फिर यह भी संभव था, उन्हें कलकत्ता पुलिस के हवाले न किया जाए और एक विशेष बस द्वारा बांग्लादेश की सीमा तक ले जाकर उन्हें सीमा में धकेल दिया जाए. डिब्बा जो सिपाही थे उनकी बातों से पता चला कि हो सकता है कलकत्ता पहुँच कर प्रक्रिया बदल दिया जाए.
"अब तक हम तुम बांग्लादेशी लोगों को कलकत्ता पुलिस के हवाले कर देते थे और वे आगे का काम करती थी. मगर पता चला है कि कोलकाता पुलिस भी तुम लोगों से मिली हुई है ज्योति बसु तुम लोगों का हमदर्द है. वे झूठ झूठ पुलिस को बताते हैं कि हम भारतीय हैं हमें बंगला भाषा बोलने के आधार पर बांग्लादेशी करार देकर बम्बई से निकाला गया है तो वह उन्हें छोड़ देती थी. और तुम लोग वापस भी आ जाते थे. परंतु इस बार हम तुम लोगों को बांग्लादेश सीमा में धकेल कर ही वापस आएंगे ताकि तुम लोग फिर कभी बम्बई वापस न आ सको. यदि भारतीय सीमा में घुसने की कोशिश करो तो बी. एस. एफ की गोली का निशाना बन जाओ.
उसे बांग्लादेश भेजा जा रहा था. एक ऐसे देश में जिसे उसने आज तक नहीं देखा था. उसे इस देश का निवासी बता कर वहां भेजा जा रहा था.
क्या वह वहां रह पाएगा? क्या वह देश उसे स्वीकार कर पाएगा? जबकि इस देश से कोई संबंध ही नहीं है. जब उसे अपने हमवतन विदेशी कर रहे हैं तो विदेश के लोग उसे कैसे अपना हमवतन समझ सकते हैं.
उसका कसूर क्या है?
इसका दोष यह है कि उसकी मातृभाषा बांग्ला है.
इसका दोष यह है कि वह मुसलमान है.
इसका दोष यह है कि वह पश्चिम बंगाल में पैदा हुआ पिला बढ़ा है.
इसका दोष यह है कि वह अपने आप को भारतीय साबित नहीं कर पाया है. उसकी दुर्भाग्य यह है कि उसने अपने भारतीय होने के जितने सबूत दिए उन्हें स्वीकार नहीं किया गया.
वह एक ऐसी मंजिल की ओर बढ़ रहा था जो उसकी अपनी नहीं थी. इसके बारे में उसे कुछ भी नहीं मालूम था. इस मंजिल के बारे में तो उसने सपने में भी नहीं सोचा था. इस मंजिल और मंजिल के बाद भविष्य से वह बिल्कुल अनजान था.
वे केवल अपने अतीत को जानता था.
और उसकी नज़रों के सामने अपने अतीत का एक क्षण घूम रहा था.
दीनाज जयपुर से मुंबई के चेता शिविर तक जीवन का एक एक क्षण उसे याद आ रहा था. उसने होश संभाला तो ख़ुद को पश्चिम बंगाल के चौबीस परगना के एक छोटे से गाँव दीनाज जयपुर में पाया.
उसने केवल अपनी माँ को देखा था. उसकी मां खेतों में काम करती थी और जो हासिल होता था, उससे अपना और उसका पेट पालतू थी.
गांव के किनारे उनकी एक छोटी सी झोपड़ी थी वह झोपड़ी में रहते थे. उसकी माँ की इच्छा थी कि वह पढ़ लिखकर बड़ा आदमी बने और उनके अच्छे दिन आएंगे इसलिए वह उसे नियमित रूप से स्कूल भेजती थी.
वह स्कूल जाता था. पढ़ने लिखने में बहुत सावधान था उसका भी मन करता था कि वह खूब पढ़े और पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बने.
गांव में सातवीं तक ही स्कूल था. उसकी माँ कहती थी अगर वह सातवीं की परीक्षा पास कर ले तो उसे पढ़ने के लिए शहर भेजेगी.
परंतु उसकी माँ का सपना पूरा नहीं हो सका और दुर्भाग्य शुरू हो गया. एक दिन उसकी माँ को सख्त बुखार आया. दो दिन तक उसकी माँ बुखार से लड़ती रही और तीसरे दिन उसने दम तोड़ दिया और वह दुनिया में अकेला रह गया.
इस समय वह सातवें कक्षा में था. उसका दुनिया में कोई नहीं था. जब से उसने होश संभाला था उसे पिता की स्थिति दिखाई नहीं दी थी. उसने गांव वालों से सुना था. जब वह तीन साल का था तब उसका पिता मर गया था. उसके पिता का इस गांव में कोई रिश्तेदार नहीं था. पता नहीं वह कहाँ से आया था और गांव में बस गया था. एक दिन शहर गया तो अपने साथ उसकी माँ को ले आया और गांव वालों से कहने लगा यह उसकी पत्नी है उसने उसके साथ शहर में विवाह किया है.
फिर वह पैदा हुआ और जब तीन साल का हुआ तो उसके पिता का निधन हो गया और अब माँ का. इस तरह वह अपने किसी रिश्तेदार के बारे में कुछ नहीं जानता था.
वह दुनिया अकेला रह गया था. अब उसे अपनी जीवन अकेले ही स्‍वंय  ही कपास थी. जीवित रहने के लिए रोटी बहुत जरूरी थी और रोटी के लिए काम करना बहुत जरूरी था. इसलिए वह काम करने लगा और काम करने के लिए उसे स्कूल की पढ़ाई छोड़नी पड़ी. वह मां की तरह खेतों में काम करके अपना गुजर बसर करता था परंतु खेतों का काम साल भर कहाँ चलता है.
छह महीने काम है तो छह महीने नहीं.
छह महीने जब काम नहीं मिलता तो भूखों मरने की नौबत आ जाती. इसलिए झुंझला उसने सोचा कि कोई दूसरा काम करना चाहिए. अगला काम गांव में मिलना मुश्किल था. इसलिए वह दूसरे काम की खोज में शहर आया.
वह कोई दूसरा काम तो जानता नहीं था इसलिए वह काम सीखने लगा.
उसे एक मोटर गीरेज में काम मिल गया.
वह गीरेज में काम सीखता था काम करता था.
उसे गीरेज का मालिक दो समय का खाना देता था और खर्च के लिए थोड़े पैसे भी. सोने के लिए गीरेज इतना बड़ा था कि किसी भी कोने में अपना बिस्तर बिछा कर सूजा था.
चार पांच सालों में बहुत अच्छा मकीनक बन गया.
एक दिन उसका गीरेज के मालिक से झगड़ा हो गया. गीरेज का मालिक उसकी वेतन नहीं बढ़ा रहा था इसलिए वह उससे उलझ गया.
झगड़े के बाद उसने वह गीरेज छोड़ दिया और कलकत्ता चला आया.
कोलकाता में उसकी जान पहचान का कोई नहीं था. इसलिए दो चार दिन यूं ही इधर उधर भटकना रहा
फिर आखिर उसे एक गीरेज में काम मिल गया.
कलकत्ता में उसने दो तीन साल निकाले. उसने सुना था कि बम्बई में बहुत काम है और बहुत पैसा भी है. अच्छे कारीगरों की वहाँ बहुत सम्मान है और अच्छा पैसा भी मिल सकता है.
इसलिए उसने मुंबई जाने की ठान.
उसके एक दो मित्र और बम्बई जा रहे थे.
वह उनके साथ मुंबई चला आया.
बम्बई कलकत्ता जैसा ही बड़ा शहर था परंतु कलकत्ता से अधिक गुंजान. उसे बम्बई में भी आसानी से काम मिल गया. क्योंकि वे इस बीच बहुत अच्छा मकीनक बन गया था.
वह गीरेज में रहने लगा और पैसे भी जमा करने लगा. उसके पास कुछ वर्षों में अच्छे खासे पैसे जमा हो गए. वह उन पैसों से चेता शिविर में एक झोपड़ी ले लिया.
वह झोपड़ी किस स्वामित्व है कानूनी या गैर कानूनी है उसने इसके बारे में नहीं सोचा था. वह तो केवल इतना जानता था कि जो व्यक्ति इस झोपड़ी में अब तक रहता है वह उसे बेच रहा था इसलिए उसने उसे खरीद लिया. झोपड़ी खरीदने के बाद मन में एक ही इच्छा होती.
"अब विवाह  कर लेनी चाहिए. क्योंकि अब तो घर हो गया है. बम्बई में विवाह  आसानी से हो जाती है परंतु घर आसानी से नहीं मिलता परंतु उसके पास तवाब घर था.
और उसके सकीना से विवाह  हो गई.
सकीना का बाप भी उसकी तरह किसी गीरेज में काम करता था. उसके एक दोस्त ने सकीना पिता से उसके रिश्ते की बात की सकीना पिता ने देखा कि लड़का अच्छा है, कमाता है. रहने के लिए घर भी है. ऐसे लड़के आजकल इतनी आसानी से कहाँ मिलते हैं.
उसने झट हां कर दी और उनकी विवाह  हो गई.
कुछ दिनों में ही सकीना उसके दिल में उतर गई.
सकीना बस हंसती रहती थी और उसे सकीना का हंसना बहुत पसंद था.
और सकीना तो उसकी हर बात पर हंसती रहती थी.
सकीना खासकर भाषा पर बहुत हंसती थी.
सकीना नासिक की रहने वाली थी और सातवीं तक पढ़ी थी. इसलिए उसकी उर्दू बहुत अच्छी थी और उर्दू के अख़बारों व रसाइल पढ़ भी लेती थी.
उसे उर्दू बिल्कुल नहीं आती थी.
बम्बई में आने के बाद उसने टूटी फूटी उर्दू बोलना सीखी थी.
वह जब तक कलकत्ता में था उसे उर्दू की जरूरत ही महसूस नहीं हुई थी. उसकी माँ बांग्लादेश बोलती थी. इसके लिए उसकी मातृभाषा बांग्ला हो गई थी.
स्कूल में वह बांग्लादेश ही पढ़ा.
कोलकाता में जहां उसने काम किया या इससे पहले जहां जहां काम किया उसके सारे साथी बांग्लादेश भाषा ही थे.
उसे बंगला भाषा से बहुत प्यार था.
बांग्लादेश पढ़ना वह जानता था इसलिए फुर्सत मिलने पर अक्सर बांग्लादेश समाचार पत्रिका पढ़ा करता था.
इसे टैगोर और काजी नज़रालसलाम के कई गीत याद थे.
उसने शरत चंद्र चटर्जी के कई उपन्यास पढ़े थे और महा शोयता देवी से सुनील गंगोपाधीाए किताबें पढ़ चुका था.
परंतु बम्बई में आने के बाद वातावरण बदल गया था.
जहाँ उसे काम मिला था वहां कोई भी बांग्लादेश नहीं जानता था इसलिए टूटी फूटी हिंदुस्तानी सीखने लगा और काम चलाउ सीखने भी गया.
सकीना से बात करने में कभी कभी बड़ी समस्या खड़ा हो जाता था.
सकीना कभी कभी उर्दू का ऐसा शब्द बोल देती थी कि इस शब्द का अर्थ ही नहीं समझ पाता था. या सकीना से बात करते करते उसके मुँह से कोई बंगला शब्द निकल जाता था कि इस शब्द का अर्थ उसे सकीना को समझाना कठिन हो जाता था.
सकीना अक्सर उससे कहती थी.
"रहमान यह बांग्लादेश छोड़ो और तुम उर्दू पढ़ना लिखना सीख जाओ. मैं तुम्हें उर्दू सिखा दूंगी."
"क्यों बंगले में क्या बुराई है."
"उर्दू हमारी भाषा है मुसलमानों की भाषा इस्लाम का सारा धार्मिक पूंजी इस भाषा में है."
"मुसलमान बांग्लादेश भी बोलते हैं. पश्चिम बंगाल के अधिकतर मुसलमानों की मातृभाषा बांग्ला है और सारे बांग्लादेश के मुसलमानों की भाषा तो बांग्लादेश ही है.
उसे बांग्लादेश से प्यार था.
उसे बम्बई में बांग्लादेश पत्रिका और अख़बारों नहीं मिलते थे. कभी कभी वह सिर्फ बांग्लादेश अखबार आनंद बाज़ार पत्र ीका और रिसाले देश खरीदने वी टी आता था. क्योंकि वहां मिलते थे.
चेता शिविर में कई बंगाली थे. इनमें से कोई अपने घर जाता तो वह कहता कि वापसी में मेरे लिए बांग्लादेश समाचार किताबें लाना नहीं भूलना.
समय गुज़रता गया इस बीच बबलो उनके बीच आ गया. बबलो के आ जाने से उनके प्यार और अधिक बढ़ गई. अचानक एक दिन उसे और सकीना को एक नोटिस मिली.
"तुम भारतीय हो इस बात का सबूत पेश करो वरना मतदान सूची से तुम्हारा नाम हटा दिया जाएगा." इस तरह की सूचना इस क्षेत्र के और भी कई लोगों को मिली थी. हर कोई नोटिस के कारण परेशान और गुस्से मेंथा.
"हमारे पास राशन कार्ड है. हमारा नाम मतदान सूची में शामिल है, फिर भी हम से नागरिकता का सबूत मांगा जा रहा है? हम यहाँ पैदा हुए, पले बढ़े हैं. इससे हमारी नागरिकता और क्या सबूत हो सकता है?"
नोटिस देखकर सकीना डर गई थी.
"रहमान तुम्हारी मातृभाषा बांग्ला है और आजकल बांग्लादेशियों की बम्बई में उपस्थिति पर बहुत शोर शराब मचा हुआ है. तुम्हें भी सूचना मिल गई है अगर तुम स्‍वंय  को भारतीय साबित नहीं किया तो मुझे डर है कि कहीं तुम्हें बांग्लादेशी करार देकर भारतीय से न निकाल दिया जाए. "
"कौन मुझे हिंदुस्तान से बाहर निकाल सकता है मैं हिंदुस्तान में पैदा हुआ हूं पिला बढ़ा हूँ."
"फिर अपने भारतीय होने का सबूत दे दो ना!"
"मेरे भारतीय होने का सबूत मेरी स्कूल का प्रवेश है जिस पर मेरी जन्मस्थान है और वह प्रवेश के लिए मुझे दीनाज जयपुर जाना पड़ेगा. कौन इतनी झंझट करेगा. वे मेरा नाम केवल मतदान सूची से काटें हैं नां?बला से काट दें? "
सकीना ने अपना स्कूल का प्रवेश पेश कर स्‍वंय  को भारतीय साबित कर दिया. परंतु रहमान स्‍वंय  को भारतीय साबित नहीं कर सका. उसका नाम मतदान सूची से काट दिया गया. उसने उसकी परवाह नहीं की. चुनाव हुए. चुनाव में रहमान वोट नहीं दे सका. उसे उसका दुख भी नहीं था.
नई सरकार थी और सरकार ने सबसे पहले ल्फ़ड़ह बांग्लादेशियों और विदेशियों को पंद्रह दिनों के भीतर भारतीय से बाहर करने का लगाया. और उस पर अमल शुरू हो गया. एक रात पुलिस आई और उसे उठाकर ले गई. पर आरोप था कि वह बांग्लादेशी है और अवैध रूप से भारतीय और बम्बई में आया है. वह चीख़ते रहा चलाता रहा. वह भारतीय है परंतु किसी ने नहीं सुनी.
"तो भारतीय कैसा रे. तो बंगाली बोलता है. तेरे घर से बंगाली किताबें और अख़बारों मिले हैं नोटिस मिलने पर तो स्‍वंय  को भारतीय साबित नहीं किया. इससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि तू बांग्लादेशी है इसलिए अब तुझे तेरे देश बांग्लादेश पहुँचाने का काम हमें करना है. "
सकीना भी बहुत गड़गड़ाई कि उसका पति भारतीय है परंतु पुलिस न मानी. सकीना ने अपनी सारी जमा पूंजी उनके सामने रख दी कि वे उसे ले लें और रहमान को छोड़ दें. उसे पता चला था कि पैसों के बल पर पुलिस ने कई लोगों को छोड़ दिया है.
"उन लोगों को छोड़ा है जो छोड़ने के लिए राजनीतिक पहुंच   आया था. ठीक है हम तेरे आदमी को छोड़ देते हैं तो भी किसी राजनीतिक व्यक्ति का साधन ला. यदि यह नहीं कर सकी तो हम यह पैसा लेकर भी तेरे आदमी नहीं छोड़ते क्योंकि हमें ऊपर से जो आदेश मिला है आदेश के अनुसार कुछ लोगों को बांग्लादेश में भेजना ही पड़ेगा. "सकीना किसी का माध्यम नहीं लगा सकी. और रहमान को बांग्लादेशी करार देकर बांग्लादेश भेजने के लिए ट्रेन में सवार कर दिया गया.
अब वह अपने ही देश से विदेशी बनकर विदेश में जा रहा था.
उसकी निर्वासित यात्रा शुरू हुआ था.
 
...
अप्रकाशित
मौलिक
------------------------समाप्‍त--------------------------------पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
मोबाईल  09322338918

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