Hindi Short Story Bidai By M.Mubin


कहानी      विदाई    लेखक  एम मुबीन   


दिन भर एक पीड़ा नअक वातावरण घर पर छाया रहा. इस पीड़ा  को या तो वह महसूस कर रहे थे या फिर उनमें . सकता है जो पड़ोसी के काफी समीप  रहे हैं वह भी पीड़ा  को महसूस कर रहे हूं परंतु वह इस बात का इज़हार नहीं कृपा रहे थे.
अपने पीड़ा  व्यक्त न तो वह कृपा रहे थे और न उनमें . इस पीड़ा  व्यक्त यदि वे करते भी तो किस पर करते? इस पीड़ा  व्यक्त केवल उनमें  पर कर सकते थे परंतु क्योंकि उनमें  स्वंय उस पीड़ा  का शिकार थी इसलिए वह भय से उस पर व्यक्त नहीं कृपा रहे थे कि कहीं उनकी बात सुन कर उनमें  फट न पड़े और उन्हें उसे संभालना मुश्किल न हो जाए.
उनमें  स्वंय उस पीड़ा  का शिकार थी उनमें  दर्द कुछ उनसे अधिक था उनमें  को स्‍वंय  को संभालना मुश्किल हो रहा था. वह भी उनके दुखों को समझ रही थी इसलिए उन पर अपने दुख व्यक्त नहीं कृपा रही थी. उनकी तरह उसे भी डर था कि अगर उसने अपने दर्द का इज़हार पर कर दिया तो उनकी सहन  की शक्ति उत्‍तर  दे देगी और वह बेकाबू हो जाएंगे. और उसके बाद उन्हें काबू में लाना मुश्किल हो जाएगा. दोनों चोर नज़रों से बार बार आदिल के चेहरे को देखते थे. काश एक क्षण के लिए उसके चेहरे पर पीड़ा  उभर आए जिसमें दोनों गिरफ्तार थे.
अगर एक क्षण के लिए भी आदिल के चेहरे पर पीड़ा  का राय उभरती तो वह समझते उनकी जीवन भर की मुहब्बत, स्नेह और ममता रंग लाई है. आदिल ने अपने नाम की तरह उनके साथ न्याय करते हुए उनकी प्रेम मोहब्बत, ममता और अपनाईत का इक़रार कर लिया है. परंतु दिन भर में एक बार भी एक क्षण के लिए भी आदिल के चेहरे पर ऐसा कोई राय नहीं उभरा था. इस बात का एहसास उनके पीड़ा  को और अधिक बढ़ा रहा था. आदिल के इस रवैये के बाद यह कहकर दिल को बहलाना पड़ रहा था.
"जब अपना ही खून सफेद हो गया है. उसके मन में इतने जित्तण से उसकी परवरिश करने वाले बूढ़े मां बाप के लिए कोई सहानुभूति की भावना नहीं है तो फिर लबनी से क्या शिकायत करें. वह तो पराए है उसने वही रास्ता चुनाजो हर कोई अपने सुख के लिए चिन्ता है. दुख तो इस बात का है कि लबनी चुने रास्ते पर चलने के लिए आदिल तैयार हो गया था. लबनी अपने साथ आए आदमियों को एक चीज़ बता कर उसे ले जाकर नीचे खड़े ट्रक में रखने का आदेश दे रही थी. वह जिस चीज़ की तरफ़ इशारा करती नौकर उस चीज़ को उसकी दी हुई निर्देश के अनुसार उठाकर नीचे रख आते. जब कोई चीज़ उनके घर से निकल कर नीचे खड़े ट्रक में पहोनचाई जाती तो उनके दिल एक ठेस लगती.
चाहे फिर वह लबनी की चीज़ हो. या फिर उनकी अपनी. लबनी यदि उनकी किसी भी चीज़ की तरफ़ इशारा कर के नौकरों को नीचे ट्रक में रख आने के लिए कहती भी तो भी वह उसके विरोध नहीं कर सकते थे. आदिल केवल एक वाक्य ने उनके विरोध का अधिकार भी छीन लिया था.
"अम्‍मी , अब्बा! अगर हम आपकी कोई चीज़ भी ले जा रहे हैं तो परमेश्वर के लिए उस पर आपत्ति कर कोई मतभेद न बढ़ाए. हमारी नयी गहस्थी है हमारे पास गहस्थी के लिए आवश्यक चीजें नहीं हैं, इसलिए जिन चीजों की जरूरत पड़ सकती है ऐसी सभी चीजें ले जा रहे हैं जब वे चीजें हमारे पास आ जाएगी या हम खरीद लेंगे तो हम वे चीजें आपको लौटा देंगे. "
"बेटे! तुम अपनी और हमारी चीज़ों की बात कर रहे हो. यह घर, उस घर की हर चीज़ तुम्हारी है. हमारा क्या है? हमारे जीवन ही कितने दिनों की है? हमारे मरने के बाद तो यह सब तुम्हारा ही होने वाला है. यदि जीवन में तुम्हारा हो गया तो कौन सी बुरी बात है. हमारे पास दो समय की रोटी बनाने के लिए दो बर्तन भी रह गए तो हमारे लिए वही काफी है. "उन्होंने कहा तो सही परंतु उनकी आंखों में आंसू आ गए परंतु इन आंसुओं का न तो आदिल पर कोई असर हुआ और न ही लबनी पर. घर की एक एक वस्‍तु  जाती रही. हर चीज़ जाने के बाद वह उनमें  के चेहरे की समीक्षा करते. उन्हें उनमें  के चेहरे पर दुख के बादल छाए दिखते तो कभी उन्हें उनमें  आँखों में एक विरोध दिखाई देता.
देखो वह मेरी अम्मी का दिया गलदान लिए जा रही है और वह तसबीह मेरे अब्बा मेरे लिए हज से लाए थे, वह पान्दान मेरी बहन मेरे लिए मुरादाबाद से लाई थी, वह तो पान नहीं खाती आधुनिक ज़माने की लड़की जो है. उसे पान्दान की क्या जरूरत? फिर वह पान्दान क्यों लिए जा रही है? उसे पार्टियों, शॉपिंग और सहेलियों के घर जाने से ही फुरसत नहीं मिलती कि कभी एक समय की नमाज़ परख ले. फिर वह तसबीह क्यों ले जा रही है?उसके पास एक से बढ़कर एक कीमती सुधार की चीज़ें हैं फिर वह मेरा गलदान क्यों लिए जा रही है? परंतु उनकी आँखों में देखते ही उनमें  को जैसे आदेश मिल जाता था कि वह विरोध न करे. और उनमें  चाह कर भी विरोध नहीं कृपा रही थी. रात में आदिल ने अपना फैसला उन्हें और उनमें  को सुनाया था.
"अब्बा! आप जानते तो हो ही गया होगा मैंने अपने लिए अलग घर ले लिया है. लबनी और अम्‍मी  की रात दिन की नाचाकी किसी दिन कोई बड़ा हादसा न बन जाए इस भय से मुझे यह कदम उठाना पड़ा. पिछले दिनों घटनाओं में हमारे संबंध तो कुछ तनावपूर्ण हो ही गए हैं. मैं नहीं चाहता कि यह तनाव और बढ़े. और हमारे बीच तलखयाँ बढ़ती जाएं. इसलिए मैंने यह कदम उठाया है. और यह सही है मुझे भी घर की जिम्मेदारी समझने दीजिए लबनी पर भी गहस्थी का बोझ आने दीजिए. हम एक दूसरे से दूर रहेंगे तो हमारे बीच प्यार कायम रहेगी. जब भी एक दूसरे का दिल चाहेगा हम एक दूसरे से मिलने आ जाया करेंगे. आपको मेरे घर आने से कोई नहीं रोके जाएगा उम्मीद है हमारे यहां से जाने के बाद भी आप हमें यहां आने से नहीं रोकें है. "
"तो हम को छोड़ कर जा रहा है, हम? अपने माँ बाप को? उनके माँ आपको जिन्होंने तुझे पैदा किया. पाला, पोसा , पढ़ाया, लिखा और योग्य बनाया कि दुनिया में आज तेरा एक स्थान है. हर कोई तेरा नाम साहित्य से लेता है तो आज अपनी पत्नी के लिए मां बाप को छोड़कर जाने की बात कर रहा है? "
"अम्‍मी ! मेरी बात को समझने की कोशिश क्यों नहीं करतीं. में अपनी जान से ज़्यादा चाहता हूँ और मैं नहीं चाहता हूँ कि मेरी या लबनी की वजह से आपको कुछ हो जाए. इसलिए माता! आप मेरे भावनाओं कोसमझने की कोशिश करें. मैंने जो कदम उठाया है कोई गलत कदम नहीं है. "
"मां बाप, अपने घर को छोड़कर जा रहा है और कह रहा है कोई ग़लत क़दम नही है? यह सब किसके लिए कर रहा है, अपनी पत्नी के लिए नां? अपनी पत्नी के कहने पर तो आज 25 वर्षों का रिश्ता तोड़ने के लिए तैयार हो गया? इस पत्नी के लिए जिसने अभी तेरे साथ ठीक से छह महीने भी नहीं गुज़ारे हैं अगर तुझे माँ बाप से उतना ही प्यार है जितना प्यार उस समय हमसे जता रहा है तो प्यार का सबूत भी दे. "
उनमें  की बात सुन कर आदिल के चेहरे पर भूकंप के टिप्पणी उभरे.
"उनमें ! तुम चुप रहो." उन्होंने उनमें  को चुप कराया.
"ठीक है पुत्र! अगर तुम्हें इसी में अपनी भलाई होती है तो हम तुम्हारी सुशीों के बीच नहीं आएंगे." उनकी बात सुन कर आदिल तो अपने कमरे में चला गया परंतु आधी रात तक और उनमें  के बीच हुज्जत और तकरार चलती रही.
"आपने उसे इतनी आसानी से घर छोड़कर चले जाने की अनुमति दे दी, आपने उसका अंजाम सोचा है, लोग क्या कहेंगे? यह सब उसकी लगाई आग है हमारी मौजूदगी में उसकी स्वतंत्रता सलब हो जाती है. उसे स्वतंत्रता नहीं मिलती है. जो चाहती है हम कारण नहीं पाती. जब हम ही नहीं होंगे तो उसे हर तरह की स्वतंत्रता मिल जाएगी. वह आदिल को बर्बाद करके रख देगी. ऐसी ऐसी हरकतें करेगी जिन्हें सुनकर हमारा सिर शर्म से झुक जाएगा. अपने करतूतों से वह हमारे परिवार के नाम पर धबह लगा देगी, वह आदिल को बर्बाद कर देगी. "
"जब वह हमारे घर में नहीं रहेगी तो फिर उसकी हरकतों से हमें क्या लेना देना? और आदिल कोई दूध पीता बच्चा नहीं है. उसे अच्छे बुरे की तमीज़ है. ग़लत बातों पर उसे रोके है."
"अरे क्या उसे रोके है, अगर उसे इतनी ही तमीज़ होती तो वह उसके कहने पर घर छोड़ने की बात नहीं करता."
"अगर वह आज कोई गलती कर रहा है तो जब उसे अपनी गलती का एहसास हो तो अपनी इस गलती पर नादम भी होगा."
"अपनी ग़लती पर लज्जा पता नहीं कब उसे महसूस हो परंतु आज तो वह अपनी जीवन नष्ट कर रहा है."
"हम ने जीवन भर उसे उंगलियां पकड़ कर चलना सिखाया परंतु आज वह इतना बड़ा हो गया है कि उसे हमारी मार्गदर्शन की जरूरत नहीं है. इसलिए उसने जो रास्ता चुना होगा ठीक ही होगा." यूँ वह आदिल के फ़ैसले को सही साबित करने की कोशिश कर रहे थे परंतु आदिल के इस फैसले ने एक बारूद का काम करते हुए उनके अस्तित्व की धज्जियां उड़ा दी थीं. उनका वह बेटा उनसे अलग हो रहा था. जिसे एक क्षण के लिए भी वह अपनी नज़रों से दूर नहीं करते थे. परंतु क्या कर सकते थे? वह अपने आप को बड़ा लाचार और बेबस महसूस कर रहे थे. अगर वह आदिल के इस फैसले का विरोध करते तो उनमें  को मुख्य मिल जाती उनमें  आदिल के अलग होने के पक्ष में नहीं थी. और एक तज़ाद खड़ा हो जाता.
लबनी और आदिल किसी भी सूरत में उनके साथ रहने के लिए तैयार नहीं होते और वे इसके लिए तैयार नहीं होते तो तज़ाद बढ़ता. प्राप्त यही होता कि जीत आदिल और लबनी की होती उन्हें और उनमें  को हआभमत उठानी पड़ती. और लोगों को तमाशा देखने का मौका मिल जाता. इसलिए अपने दिल पर पत्थर रखते हुए उन्होंने आदिल के फैसले को स्वीकार किया था.
रात न वह सो सके और न ही उनमें  सो सकी. देर रात तक आदिल के कमरे से और लबनी की खुसर पसर की आवाज़ें आती रहीं. पलंग पर वह चुप चाप चित लेटे छत को ताकते रहे. उनमें  दूसरी तरफ करवट लिए दीवार ताकत रही. दोनों के मन में एक तूफान उठा रहा. उनकी आंखों के सामने आदिल के जन्म से ता दम तक एक एक क्षण, एक घटना किसी फ़िल्म की तरह चकरा रहा.
कितनी मन्नतों, मुरादों, मुश्किलों और मुसीबतों के बाद आदिल का जन्म हुआ था. विवाह  के पांच साल के बाद भी जब उनके घर कोई औलाद नहीं हुई तो वह औलाद की खुशी से निराश हो गए थे. दोनों ने अपना चेकअप कराया था डॉक्टरों ने बताया था कि उनमें कोई कमी नहीं है. फिर भी वह बच्चों के सुख से वंचित थे. उसे उनकी तक़दीर कम नसीब समझा जाए या कुदरत का मज़ाक़ या संकट. हजारों उपचार, मन्नतों और मुरादों के बाद उनके बाप बनने की खुश खबरी मिली थी. इस खबर को सुन कर उनकी हालत पागलों सी हो गई थी. उनमें  से उसकी खुशी संभाले नहीं संभल रही थी. उनके करीबी रिश्तेदार और कृपया फरमाउं में भी इस खबर को सुनकर खुशीलहर दौड़ गई थी. उन्होंने सबसे पहले यह खबर उन्हें सुनाई थी. क्योंकि उनकी बातें पाँच सालों तक उनके लिए उनमें  के लिए बड़ी अदिति का कारण बनी थीं. लोग हज़ारों तरह की बातें करते थे. कभी कहते उनमें  में कोई कमी है, कभी किसी कमी का आरोप लगाते. कभी कहते दोनों स्‍वंय  अब बच्चा नहीं चाह रहे हैं कुछ दिन और ऐयाशी  करना चाहते हैं. कभी उन्हें सलाह देते उनमें  उन्हें औलाद का सुख नहीं दे सकती. औलाद के लिए वह दूसरी विवाह  कर लें.
कभी उनमें  को समझाते उनसे उसे औलाद नहीं हो सकती इसलिए उनके पीछे वह क्यों जीवन तबाह कर रही है. अभी से संभल जाए और होश से काम ले उसकी अच्छी खासी नौकरी है वह स्‍वंय  कफ़ेल है. चाहे तो उनसे तलाक लेकर किसी पुरुष से विवाह  कर सकती है जो उसे औलाद का सुख दे. कभी उड़ाते कि दोनों नौकरी पेशा है. घर में कोई ऐसा नहीं है जो उनके बाद बच्चे की देखरेख करें इसलिए इस ज़िम्मेदारी से घबरा कर चाहते हैं कि उन्हें औलाद न हो.
जब भी वह किसी की बात सुनते उनके दिल को चोट सी लगती. उनमें  की आँखों से टिप टिप आँसू गिरने लगते और दहाड़ें मार मार कर रोने लगती और उनमें  को संभालना मुश्किल हो जाता. वह भुराई आवाज़ में कह उठती.
"मुझ में ही कोई कमी है. आपको औलाद का सुख नहीं दे सकती आप मेरे पीछे जीवन बर्बाद न करें और किसी दूसरी लड़की से विवाह  कर लें. ताकि वह आपको औलाद का सुख दे सके." उनमें  को लाउत्‍तर  करने के वह उनमें  के शब्द उसे लूटा देते तो उनमें  तड़प उठती.
"भगवान के लिए ऐसी बातें मुंह से न नकालए. एक क्षण के लिए भी आप से अलग होने की कल्पना नहीं कर सकती." इतने सालों से बाद उन्हें औलाद का सुसमाचार मिली थी.
आदिल की जन्म भी परीक्षा से कम नहीं थी. एक आग का दरिया था जिसे दोनों पार करना था. आदिल की जन्म के बाद ऐसे हालात पैदा हो गए कि उनमें  जीवन खतरे में पड़ गई.
आखिर ऑपरेशन के बाद डॉक्टरों ने उनमें  और आदिल दोनों को बचा लिया परंतु इस कीमत पर कि उनमें  अब कभी मां नहीं बन पाएगी.
आदिल को पाकर उन्होंने खुशी खुशी यह रकम भी अदा कर दी. आदिल को पाकर उन्हें लगा जैसे उन्हें विश्व की सबसे बड़ी नेमत मिल गई. उसके बाद उनके मन में परमेश्वर की किसी नेमत की तमन्ना ही नहीं है. तीन महीनोंतक उनमें  घर में रही. उसके बाद आदिल को छोड़कर स्कूल जाने का कड़ा परीक्षा आगया. भावनाओं में यह फैसला भी किया गया कि आदिल के लिए उनमें  नौकरी छोड़ दे. क्योंकि उनका ऑफिस में दिल नहीं लगता है. आदिल में ही ध्यान लगा रहता है. परंतु यह तय किया गया कि आदिल की भलाई के लिए जीवन संवारने के लिए उनमें  नौकरी जारी रखेगी क्योंकि यह तय किया गया उनमें  एक एक पैसा आदिल की जाति पर खर्च कर उसे एक नेक, सालेह, अच्छा और सफल इंसान बनाया जाएगा. आदिल कभी नौकरों, पड़ोसियों या कभी रिश्तेदारों के पास छोड़ कर दोनों ड्यूटी पर निकल जाते. ऑफिस में उनका दिल नहीं लगता था. नज़रें घड़ी की सोईों पर लगी रहती थीं. जिस समय घड़ियाँ वह घंटा बताती जब उनमें  स्कूल से घर आ जाती तो उन्हें आराम मिल जाता.
अब आदिल सही हाथों में पहुँच गया है. अब चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. जैसे आदिल बड़ा हो रहा था इसके लिए उनके दिल में प्यार बढ़ती जा रही थी. उसकी मासूम हरकतें, आवाज़ें, बातों से अधिकार इस के लिए दिल में प्यार उमड़ आता था और वह उसे लिपटा लेते थे.
आदिल को मामूली छींक भी आ जाती तो उनका दिल चिंता से ग्रस्त हो जाता था. आदिल के शरीर का तापमान मामूली भी बढ़ जाता तो उनकी सारी रात आंखों में कट जाती थी. आदिल को मामूली बुखार भी आ जाता तो बड़े से बड़े डॉक्टर का इलाज कराया जाता.
बड़ा हुआ तो शिक्षा की चिंता सताने लगी. उसे सबसे अच्छे स्कूल में भर्ती किया गया और शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा. दो घंटे उसे पढ़ाते थे और दो घंटे उनमें . वैसे आदिल काफी बुद्धिमान था. फिर उनकी प्रशिक्षण और शिक्षा तो सोने पर सहाथान का काम करने लगी. वह हमेशा अपनी कक्षा में अव्वल आता. इसका नतीजा यह निकला कि दसवीं परीक्षा में बोर्ड के पहले दस सफल छात्रों में स्थान पा गया.
आदिल सिविल इंजीनियर बनना चाहता था. उन्होंने भी उसकी इच्छा के आगे अपना सिर खुम किया. उन्होंने आदिल के बारे में बहुत कुछ सोच रखा था परंतु वह आदिल की ईच्‍छा के ख़िलाफ़ कोई काम नहीं करना चाहते थे आदिल की रुचि का ही काम करना चाहते थे अच्छे नंबरों के कारण उसे आसानी से एक अच्छे कॉलेज में दाखिला मिल गया. पढ़ाई में वह तेज था अपने लेख में बहुत मेहनत करने लगा.
द्वारा शिक्षा रहते हुए भी वे एक सिविल इंजीनियर के पास जाने लगा और वह काम करने लगा जिसे उसे परीक्षा पास करने के बाद करना था. दो तीन सालों में ही वह अपने क्षेत्र का इतना माहिर हो गया कि बड़े से बड़े इंजीनियर भी उसका मुक़ाबला नहीं कर पाए थे. उसके बनाए योजना, नकशों और खाकों में कोई भी गलती नहीं निकाल पाता था. नक्शे, चित्र और योजना वह करता था परंतु इस पर मुहर किसी और की लगती थी. बाद में नकशों पर बनने वाली इमारतें भी इसी द्वारा निगरानी निर्माण होती थी.
डिग्री मिलने से पहले ही उसका इतना नाम हो गया था और उसे इतना अनुभव प्राप्त हो गया था जिसे पाने में औरों को कई साल लग जाते थे. परीक्षा में शामिल नंबरों से सफल रहा. उसके सफल होते ही एक बहुत बड़ी कंस्ट्रक्शन फर्म उसे नौकरी मिल गई. अच्छी वेतन के साथ उसे गाड़ी और बंगला मिला. परंतु उसने बांग्लादेश यह कहकर लौटा दिया कि अपनी अम्मी और अब्बा के साथ उस छोटे से घर में रह कर उनके सारे सपने पूरे कर उनकी सेवा करना चाहता हूँ जो उन्होंने मेरे लिए देखे हैं.
एक सपूत बेटे की तरह वह अपनी सारी वेतन लाकर उन्हें दे देता था. ऑफिस से आने के बाद भी उनके घर आदिल से मिलने वालों का मेला लगा रहता था. वे चाहते थे कि आदिल कार्यालय से आने के बाद उनका कामकरे. वह उनका काम करता तो उसे जितनी वेतन मिलती थी उससे अधिक पैसा मिल जाता था. कई लोगों ने सुझाव दिया कि वह नौकरी छोड़कर अपना स्‍वंय  का कारोबार शुरू कर दे. यह कोई मुश्किल काम नहीं था.
अंत आदिल ने अपना अलग व्यवसाय शुरू कर दिया और दिन दोनिय रात चौगनी उन्नति करने लगा. इस बीच दोनों रिटायर हो गए थे. इन सभी सफलताओं के बाद माँ बाप का बच्चों के लिए बस एक ही अंतिम सपना होता है. औलाद का श्रेय देखे और बहू को घर देखने का सपना. यह सपना भी पूरा हो गया. लबनी बहू बनकर उनके घर आ गई. लबनी एक बहुत अमीर कबीर घराने की चश्म और चिराग थी. खूबसूरत इतनी कि उसकी सुंदरता के सारे शहर में चर्चे थे. ऐसी पत्नी पाकर कौन खुश नहीं हो सकता था. परंतु कुछ दिनों में ही उन्होंने महसूस किया कि लबनी और उनमें  के विचारों में ज़मीन आसमान का अंतर है. जो बातें लबनी को पसंद थीं वह उनमें  को पसंद नहीं थीं. उनमें  लबनी को जिस रूप में देखना चाहती थी वह लबनी के लिए एक दकियानूसी रूप था.
पहले दबे शब्दों में बाद में ऊँची आवाज़ में मुद्दों पर दोनों में बहस व तकरार हुई. ऐसी हालत में वह मध्यस्थ की भूमिका निभाते हुए भी उनमें  को दबाते थे. आदिल भी तमाशाई बना रहता. कभी लबनी की जिम्मेदारी करते हुए मां को समझाता कि वह बड़ी है उसे उन छोटी बातों को अनदेखा कर देना चाहिए. या फिर कभी माँ का पक्ष करता.
आखिर वही हुआ जिसके कल्पना से ही कभी कभी वह कांप उठते थे. आदिल और लबनी ने अलग रहने का फैसला कर लिया. और वह घर छोड़ कर जा रहे थे. और घर पर एक पीड़ा नअक सन्नाटा छाया हुआ था. उनके अंदर दर्द का नदी ठाठें मार रहा था रात तक वही सन्नाटा घर में बरकरार रहा.
"आदिल हमें छोड़कर चला गया, उसने पत्नी के लिए हमें छोड़ दिया, हमारी मोहब्बतों का हमें यह सिला दिया? आखिर हमारी प्यार में ऐसी क्या कमी रह गई थी जो उसे बांध कर हमारे पास नहीं रख सकती थी." उनमें  घर की दीवारों को घूरते हुए पागलों की तरह बड़बड़ा रही थी. "अब उसके जाने का गम न करो और स्‍वंय  को संभाल." उन्होंने उसे समझाया. समझ लो ख़ुदा ने हमें बेटा नहीं बेटी दी थी. बेटी तो पराए अमानत होती है. एक न एक दिन तो उसे अपने घर जाना होता है. समझ लो आज हमारी बेटी की विवाह  हो गई है और आज वह हमसे बिछड़ कर अपने घर चली गई है. "उनकी इस बात को सुनते ही उनमें  फूट फूट कर रोने लगी.
पता नहीं यह किसके ोसाल के आंसू थे. बेटे या बेटी के?

अप्रकाशित
मौलिक
------------------------समाप्‍त--------------------------------पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
मोबाईल  09322338918

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